Alka

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Tuesday, 8 March 2016

बदलेगी सोच तभी मिलेगा नारियो को हक़

तहलका न्यूज़ में प्रकाशितhttp://www.tahlkanews.com/archives/53868
बदलता है मौसम
बदलते है हम
बदलेगी सोच
तभी मिलेगा
नारियो को हक़
जब देश आज़ाद हुआ तो आज़ादी सबके हिस्से में आई । पहले तो ये उत्सव के रूप में मनाई गई लेकिन धीरे-धीरे ये एकपक्षीय हो गई और आज़ादी के नाम पर उदंडता होने लगी जिसका खामियाजा महिलायों के हिस्से आया । दहेज़, बलात्कार, घरेलू हिंसा, कुप्रथाओं जैसे घ्रणित कृत्य आज़ादी की उसी अति का नतीजा है । तभी आज कुकृत्यो के पूरी तरह से बंद होने की आशंका ही नहीं होती इसका कारण एक सख्त कानून का न होना है ।
आज़ादी के बाद महिलाओं को न ही उनके हक़ मिले न ही सम्मान और सुविधाएं जिनकी वे हकदारी थी । बेशक महिलाओं को अपनी सीमाओं में रहकर कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए लेकिन खुद के हक़ को तिलांजलि देकर नहीं ।
महिलाओं की स्थिति / सभी  क्षेत्रों  में बदलती सूरत
तब से लेकर आज तक यानी प्राचीनकाल से लेकर आधुनिक काल तक काफी बदल चुकी है महिलाओं की स्थति । आधुनिक आंकड़ो के हिसाब से महिला साक्षरता 58 प्रतिशत है, विद्यालयों में बालिकाओं का पंजीकरण 47 प्रतिशत है, महिलाओं की कमाई 26 प्रतिशत है, सरकार में महिलाये 6 प्रतिशत है, शिशु मृत्यु दर ( प्रति एक हज़ार  ज़न्म पर ) 73, मातृ मृत्यु दर ( प्रति एक लाख ज़न्म पर ) 570 है ।
कम उम्र में शादी के कारण किशोरियों गर्भावस्था में, 550 मौते 1949 में हुई वही 2013 में 220 हुई ।
15 प्रतिशत महिलाए 50 के दशक में संगठित और असंगठित क्षेत्रों में नौकरिया करती है, 2010 में 65 प्रतिशत हो गया ।
55 प्रतिशत लड़कियां 50 के दशक में पांचवी कक्षा तक आते-आते पढाई छोड़ देती थी वहीँ अब 16 प्रतिशत हो गया है ।
महिलाओं के लिए योजनाएंउज्ज्वला – यह योजना महिलाओं की तस्करी को रोकने एवं उन्हें पुनर्वासित करने के लिए है । गैर सरकारी संगठनो के ज़रिये यह योज़ना चलाई जा रही है लेकिन क्या सभी लापता लड़कियां मिल जाती है ।
इंदिरा गाँधी मातृत्व सहयोग योज़ना – गरीब महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान खुद और बच्चे की देखभाल के लिए चार हज़ार रुपये की नकद राशी प्रदान की जाती है । लेकिन आंकड़ो के मुताबिक केवल 13 करोड़ 40 लाख महिलाए लाभान्वित हुई है क्या बाकी की महिलाए अमीर है अगर नहीं तो उनका हक कहाँ है ?
स्वाधार योज़ना – फुटपाथ पर रहने वाली एवं बेघर महिलाओं के लिए यह योज़ना है । एसी महिलाओं को योज़ना के तहत अस्थाई आवास सुविधा मुहैया कराइ जाती है लेकिन अभी भी कई ऐसी महिलाए है जिन्हें ये हक़ नहीं मिला है ।
इसी तरह अनेको योजनाये जैसे – वीमेंस एम्पोवेर्मेंट एंड लाइवलीहुड प्रोग्राम, स्वाधार गृह स्कीम, जननी सुरक्षा योज़ना, राष्ट्रीय महिला कोष, सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वीमेंस, राजीव गांधी नेशनल क्रेच स्कीम फॉर दी चिल्ड्रेन ऑफ़ वर्किंग मदर, सेंट्रल सोशल वेलफेयर बोर्ड, वेर्किंग वीमेंस हास्टल इत्यादि चलाई जाती है लेकिन इन सभी योजनाओं का इतना हक नहीं मिल पाता महिलाओं को जितना मिलना चाहिए ।
उपर दिए गये अंशो में जहाँ एक ओर उनके हितो और विकास की बाते की जाती है और उसे अमल करने के लिए योजनाये भी बनाई जाती है लेकिन उन्हें उन योजनाओं का अशिक्षा, अज्ञानता व भेदभाव के कारण हक नहीं मिल पाता जो की मिलना चाहिए ।
जब महिलाओं को पूर्ण रूप से अपना हक़ मिलेगा आज़ादी मिलेगी तभी एक विकसित राष्ट्र का निर्माण संभव है जिस प्रकार एक बच्चे की परवरिश और एक आदमी की सफलता के पीछे एक महिला का ही हाथ होता है उसी प्रकार जब महिलाओं को उनका हक पूर्ण रूप से मिल जायेगा तो एक विकसित राष्ट्र का निर्माण हो जाएगा ।

Wednesday, 14 October 2015


          ई.पेपर, वेब-पोर्टल दे रहे अखबारों को चुनौती
 
जैसे एक विद्वान नए सिधांत को जन्म देता है चुकी हर एक चीज के दो पहलू होते है इसलिए उस सिधांत की खामियां एक दूसरे नये सिधांत को जन्म दे देती  है I
इसी तरह रेडिओ की खामियों ने टीवी को जन्म दिया, टीवी की खामियों ने कम्प्यूटर को जन्म दिया और कंप्यूटर की खामियों ने इंटरनेट का आविष्कार कर दिया I
यानी नयी पद्धति पुरानी पद्धति को थोडा या पूरी तरह से रिप्लेस करती है I
सोशल नेटवर्किंग साईट, ऑन लाइन विज्ञापन, वेब पोर्टल और ई.पेपर जैसी नयी तकनिकी ने अख़बारों को एक नयी चुनौती दी है जिससे अख़बारों में विज्ञापनों से होने वाली आमदनी में तो गिरावट दर्ज की गई है I क्या अख़बार के पाठकों में भी इसकी गिरावट आई है
सोशल मिडिया पर निगाह रखने वाली कम्पनी ‘’ वी आर सोशल ‘’ की रिपोर्ट के अनुसार- सोशल नेटवर्किंग के इस्तेमाल में मोबाइल फोन ने कम्प्यूटर और लैपटॉप को पीछे छोड़ दिया है I सोशल मिडिया पर फोन से मौजूदगी रखने वालों की संख्या 56% की दर से बढ़ रही है जबकि कम्प्यूटर और लैपटॉप के जरिये सोशल मिडिया पर एक्टिव यूजर्स की संख्या में मात्र 13 फीसदी की दर से बढ़ी है I  अपने स्मार्ट फोन में 3जी इंटरनेट या 4जी इंटरनेट प्लान की स्पीड से भले ही आप खुश हों लेकिन विश्व के अन्य बड़े देशों के मुकाबले मोबाइल पर एक्टिव इंटरनेट डाटा की औसत रफ़्तार में भारत काफी पीछे है I
सोशल मिडिया पर लोगों की बढती सक्रियता तो है लेकिन क्या वे ई.पेपर भी एक्सेस करते है I इस बात का अंदाज़ा लगाना कठिन है की आने वाले समय में समाचार पत्र बंद हो जायेगा क्यूकि विश्व की आबादी लगभग 7 अरब है और इंटरनेट पर सक्रीय केवल 3 अरब है I
व्यक्ति अपने आस-पास व् देश विदेश में घटित घटनाओं से परिचित होने के लिए समाचार पढता देखता व् सुनता है I
जहाँ तक अख़बारों पर आई चुनौती की बात है तो 100 लोगों पर किये गये शोध के अनुसार अभी भी ई.पेपर, वेब-पोर्टल के साथ-साथ 92% लोग समाचार पत्र पढ़ते है I ई पेपर लोग इसलिए पढ़ते है क्योंकि हर समय समाचार पत्र को अपने साथ कैरी नहीं किया जा सकता I
             



Monday, 12 October 2015

                      क्या है जिन्दगी ?

                                       जिन्दगी आखिर,
                                                     है क्या जिन्दगी ?
                                       कभी संभल कर गिरना
                                                    तो कभी गिर कर
                                       सम्भलना है जिन्दगी I
                                                    बचपन की अटखेलियाँ,
                                                    और बुढ़ापे की गुफ्तगू है जिन्दगी I
                                       चेहरे पर ख़ुशी,
                                                     और आँखों में आंसू है जिन्दगी I
                                       दुखों का पहाड़,
                                                    और खुशियों का खज़ाना है जिन्दगी I
                                       टीचर की फटकार,
                                                    और माँ का प्यार है जिन्दगी I

Monday, 7 September 2015



               कुछ ऐसा हो देश हमारा

                         कुछ ऐसा हो देश हमारा,
                         बहे ज्ञान की अदभुद धारा I
                         पूरा देश साक्षर हो जाये,
                         सर्व शिक्षा हो अभियान हमारा I
                         भ्रष्टाचार का सफाया हो जाये,
                         इनकम टैक्स हो अभियान हमाराI
                         हर बुराई का अंत हो जाये,
                         द्रढ़ निश्चय हो हथियार हमारा I
                         कुछ ऐसा हो देश हमारा,
                         बहे ज्ञान की अदभुद धारा I

Friday, 4 September 2015



         सबसे बड़ा है ओहदा शिक्षक का

           सबसे बड़ा है ओहदा शिक्षक का,
           क्योकि पाठ पढ़ता हमे ये जीवन का I
           अच्छे बुरे की हमे सीख सिखाता,
           जानवर से इंसान बनाता I
           दोस्ती का भी फर्ज निभाता,
           जरूरत पड़े तो गूगल बन जाता I
           अब और क्या तारीफ़ करूं,
           निशब्द को शब्दों में कैसे बयां करूँ I
           सबसे बड़ा है ओहदा शिक्षक का,
           क्योकि पाठ पढ़ता हमे ये जीवन का I

Thursday, 20 August 2015



हमारे देश के विकास के लिए बनाई गई योजनाओं के स्लोगन जीतने अच्छे है उतना ही अच्छा यदि विकास हो पता तो आज देश की शक्ल कुछ और ही होती.
तो मै अपनी टिप्पणी के शुरुआत बेटी से करुँगी क्यूकि उनके शोषण को लेकर अखबार में हर दिन एक नया मुद्दा गरमाया रहता है.
बेटी बढाओ बेटी बचाओ कार्यक्रम जैसा की नाम से ही स्पष्ट हो रहा है बेटी पढाओ यानि बेटियों को पढाओ कोई भी शिक्षा से वंचित न रह जाए, बेटी बचाओ किसी भी बेटी को कोई नुकसान ना पहुचे और वो सुरक्षित रहे. लेकिन आप सब जानते है की आज कितनी बेटियां स्कूल पढने जाती है और कितनी बेटियां सुरक्षित है.
सुकन्या सम्रद्दी खाता योजना इसे बचत को प्रोत्साहन करने के लिए बनाया गया था लेकिन आधी जनता तो शायद इस बात से ही वंचित होगी की ऐसी भी कोई योजना है या ये योजना क्या है.
नई मंजिल योजना, मेक इन इंडिया योजना, सब पढ़े सब बढे ऐसी बहुत सी योजना लागू हुईं लेकिन इसका उतना प्रभाव देखने को नहीं मिला जितना मिलना चाहिए.
और फिर उम्मीदों का प्रदेश उत्तर प्रदेश क्या केवल उम्मीद ही लगाये रह जायेगा.